Korba

400 साल बाद राम की वापसी, हम बनेंगे इस पल के साक्षी

मंदिर उद्धाटन के पूर्व इस समुदाय के 45 रामनामियों को विशेष तौर पर आमंत्रित कर सम्मानित किया गया।

कोरबा यूं तो राम भक्तों की कमी नहीं। राम लला का दर्शन करने कोई पैदल तो कोई साइकिल पर आयोध्या जा रहा। हम बात कर रहे राम के ऐसे भक्तों की जिन्होने अपने पूरे शरीर में राम नाम का गोदना गोदा रखा है। अमिट स्याही वाले नुकीले सुई से गोदकर गोदना लिखा जाता है। शरीर के एक छोटे से हिस्से में गोदना गोदना से काफी दर्द होता है। पूरे शरीर में लिखाना कितना कठिन होता है यह समझा जा सकता है। रामनामी समुदाय से जुड़े ये रामभक्त छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा, सारंगगढ़, सक्ती समेत कुछ जिलों में ही हैं। अब गोदना गोदाने वालों की संख्या कम हो गई है। राम नाम लिखा सफेद वस्त्र धारण किए व कपड़े में गूंथे मोर पंख मुकुट इनकी विशेष पहचान है। बोलते समय भी हर वाक्य के पहले राम और बाद में राम लगाते हैं। मंदिर उद्धाटन के पूर्व इस समुदाय के 45 रामनामियों को विशेष तौर पर आमंत्रित कर सम्मानित किया गया।

समुदाय के अध्यक्ष कौशल रामनामी ने कहा कि कलयुग केवल नाम अधारा, सुमरि-सुमरि नर उतरहिं पारा। इस कठिन कलिकाल में राम नाम का अधार ही श्रेष्ठ है। राम हमारे ईष्ट देव ही नहीं बल्कि हमारे रोम-रोम में बसने वाले परमपिता परमात्मा हैं। एक मात्र वही हमारे आधार है। अयोध्या में राम लला के प्रतिमा की स्थापना से रामनामी समुदाय में उल्लास है। 400 वर्षों की लंबी प्रतीक्षा बाद श्रीराम की अपने जन्म स्थल में वापसी हो रही है, हम इसके साक्षी बनेंगे। इससे बढ़कर खुशी की और क्या बात हो सकती है। कौशल ने बताया कि शरीर हमारा मंदिर है और राम हमारे रोम-रोम में बसे हैं। पूरे विश्व में हमारे ईष्ट का डंका बज रहा। हमारा समुदाय भारत ही नहीं पूरे विश्व को 22 जनवरी को घर-घर में दीवाली मनाने का संदेश देना चाहता है।

भगवान राम ने सामाजिक समरसता की जो राह दिखाई उसे बाबा गुरू घासीदास ने आगे बढ़ाया। शरीर में राम-राम लिखने की प्रेरणा के बारे कौशल ने बताया कि जांजगीर-चांपा जिला के ग्राम चारापारा निवासी लहरी पहले रामनामी थे। शरीर में रामनाम नाम लिखवाने के लिए ऊपर से परमात्मा की आवाज उन्हे सुनाई दी। 200 साल पहले शुरू की गई परंपरा के वे पांचवीं पीढ़ी हैं। नई पीढ़ी के लोगाें को इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जा रहा। वे कहते हैं कि अयोध्या से बुलावा आया है यह हमारा सौभाग्य है। समुदाय के बुजुर्ग रामदीन रामनामी का कहना है कि शरीर में रामनाम अंकित कराने वाले समुदाय के लोगों की संख्या अब सिमटती जा रही हैं। आने वाले वर्षों में यह समुदाय केवल स्मृतियों में ही शेष रह जाएगा। सम्मान समारोह में शामिल होने से पहले समुदाय के लोगों ने गीतांजलि भवन के सामने शहर के मुख्य मार्ग में रामनामी संकीर्तन यात्रा भी निकाली

चौका आरती की समुदाय में परंपरा

आयोजन में शामिल होने पहुंचे श्यामलाल रामनामी ने बताया कि समुदाय में राम नाम का भजन के साथ चौका आरती की परंपरा है। दीप प्रज्वलित राम के गुण का बखान करते हैं। जैतखाम में राम- राम लिख कर उसकी परिक्रमा की जाती है। गुरू घासी दास बाबा ने सत्यनाम का जो संदेश दिया है वही राम है। सत्य स्वरूप रामनाम ही हमारे लिए साक्षात ईश्वर हैं।


Suraj Tandekar

Chief Editor

Related Articles

Back to top button