Chattisgarh: मुठभेड़ में CRPF के पास हेलीकॉप्टर होता, तो 400 नक्सलियों को तबाह करने में सक्षम थे कोबरा कमांडो
सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ में नक्सलियों ने भारी फायरिंग के अलावा 100 से ज्यादा बैरल ग्रेनेड लॉन्चर (बीजीएल) दागे थे। चार घंटे तक चली मुठभेड़ में करीब चार सौ नक्सली शामिल थे। नक्सलियों की रणनीति थी कि सुरक्षा बलों की टीम को चारों तरफ से घेर कर उन पर फायरिंग की जाए…
छत्तीसगढ़ में मंगलवार को सुकमा और बीजापुर जिले की सीमा पर स्थित टेकलगुड़ेम में नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच एक बड़ी मुठभेड़ हुई थी। इसमें सीआरपीएफ के तीन जवानों की शहादत हुई है, जबकि 15 जवान और अधिकारी घायल हुए हैं। खास बात है कि सीआरपीएफ कोबरा (201 बटालियन) के जांबाज कमांडो ने आमने-सामने की लड़ाई में घातक हथियारों से लैस करीब चार सौ नक्सलियों को खदेड़ दिया था। सूत्रों का कहना है कि अगर इस मुठभेड़ के दौरान सीआरपीएफ के पास हेलीकॉप्टर होता, तो कोबरा कमांडो, 400 नक्सलियों की पूरी बटालियन को तबाह कर सकते थे। ड्रोन से मिली तस्वीरों में करीब आठ से दस नक्सलियों की डेड बॉडी देखी गई हैं। डीसी लखवीर और एसी राजेश पांचाल, जो इस मुठभेड़ में घायल हुए हैं, उनकी टीम के जांबाज कमांडो, संख्या में थोड़े होने के बावजूद उस वक्त तक मौके पर डटे रहे, जब तक सभी नक्सली खदेड़ नहीं दिए गए।
शाह ने दिया है तीन साल का टारगेट
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सीआरपीएफ कोबरा द्वारा लगातार नए कैंप स्थापित किए जा रहे हैं। इस वजह से नक्सली बौखला उठे हैं। वे एंबुश और आईईडी हमलों के जरिए सुरक्षा बलों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करते हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि तीन साल में नक्सल की समस्या को पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा। इसके बाद तेजी से नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों के कैंप स्थापित हो रहे हैं। सीआरपीएफ कोबरा और छत्तीसगढ़ पुलिस की डीआरजी इकाई, नक्सलियों को उनके ठिकाने पर जाकर उन्हें खदेड़ रही है। टेकलगुड़ेम में भी नया कैंप स्थापित किया गया है। इस कैंप की सुरक्षा के लिए जूनागुड़ा-अलीगुड़ा इलाके में जवानों की एक टीम गश्त पर निकली थी। जंगल में छिपे बैठे नक्सलियों ने सुरक्षा बलों पर घात लगाकर हमला करने की रणनीति बनाई थी।
नक्सलियों ने 100 से ज्यादा बीजीएल दागे
सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ में नक्सलियों ने भारी फायरिंग के अलावा 100 से ज्यादा बैरल ग्रेनेड लॉन्चर (बीजीएल) दागे थे। चार घंटे तक चली मुठभेड़ में करीब चार सौ नक्सली शामिल थे। नक्सलियों की रणनीति थी कि सुरक्षा बलों की टीम को चारों तरफ से घेर कर उन पर फायरिंग की जाए। इसके लिए उन्होंने, भारी संख्या में बैरल ग्रेनेड लॉन्चर का इस्तेमाल किया। नक्सलियों ने जवानों को दोतरफा घेर कर उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। सुरक्षा बलों पर फायरिंग के बाद नक्सली उन पर आईईडी हमला करना चाह रहे थे। इसके लिए उन्होंने कई जगहों पर आईईडी दबा रखी थी। आमने सामने की लड़ाई में कोबरा कमांडो ने जबरदस्त तरीके से नक्सलियों का मुकाबला कर उन्हें खदेड़ा। तीन जवानों की शहादत और 15 जवानों के घायल होने के बाद भी कमांडो ने मोर्चा नहीं छोड़ा। कोबरा 201 की टीम अपनी जगह पर डटी रही। नक्सलियों द्वारा पूरी प्लानिंग से किए गए हमले को कोबरा जवानों ने नाकाम किया।
हेलीकॉप्टर न मिलने का नुकसान
सूत्रों का कहना है कि इस मुठभेड़ को नक्सलियों ने बहुत सोच समझकर अंजाम दिया था। वे चारों तरफ से जवानों को घेर कर नुकसान पहुंचान चाहते थे। यही वजह रही कि इसके लिए नक्सलियों ने अपनी बटालियन (पीएलजीए) के करीब 400 लोगों को हमले के लिए तैयार किया था। इनकी तुलना में जवान एक चौथाई थे। ड्रोन से मालूम हुआ कि नक्सली, अपने मृतक साथियों के शवों को उठाकर ले जा रहे थे। वे कुछ दूरी पर दोबारा से एकत्रित हुए। अगर उस वक्त जवानों के पास हेलीकॉप्टर सपोर्ट होता, तो नक्सलियों की एक बड़ी संख्या को खत्म किया जा सकता था। एयर सपोर्ट न मिलने के कारण नक्सली भाग जाते हैं। चूंकि इस मुठभेड़ में नक्सलियों की संख्या करीब चार सौ थी, ऐसे में उन्हें एयर स्ट्राइक के जरिए घेरा जा सकता था। सरेंडर के लिए मजबूर कर सकते थे। अभी तक जितनी भी मुठभेड़ हुई हैं, उनमें नक्सलियों के भाग जाने के बाद वह आपरेशन खत्म हो जाता है। उस वक्त एयर सपोर्ट मिल जाए तो यह मालूम हो सकता है कि नक्सली किस तरफ भागे हैं। हेलीकॉप्टर के जरिए कमांडो को दूसरे रास्ते पर उतार कर नक्सलियों को घेरा जा सकता है। सहायक कमांडेंट राजेश पांचाल, तब तक अपनी टीम के साथ मौके पर डटे रहे, जब तक कि वहां से सभी जवानों को बाहर नहीं निकाल लिया गया।